शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

यादों का सफ़र

'आज सुबहा-सुबहा जब आँख खोली.........आदतन नज़र मोबाइल पै पड़ी..तो कुछ sms  थे आगंतुक वर्ष की बधाइयों के........  फिर अनायास ही  यादों को झरोखो से बीते  हुए लम्हों  को झाँकने लगा.... देखा तो सामने वक़्त का परिंदा दिखा...... यादों की धुंधली चांदर ओड़े हुए........!
 फिर  से कुछ कही कुछ अनकही बातें, कुछ यादें कुछ सौगातें .....किसी का मिलना किसी का बिछड़ना...कभी रोना तो कभी हँसना .....
कभी जितना तो कभी हारना ....... ......याद आने लगी.......!
अचानक फ़ोन की घंटी बजी.....ख्यालों की दुनिया से निकल कर देखा........एक और sms  था.......मेरे अज़ीज़ का ....
ज्यूँ ही आँखों में हाथ लगा के देखा .........हाथों में गीलेपन का अहसास हुआ......
पलके भीग आई थी.....ख्यालों में वो वक़्त था जो  अभी अभी गुज़ारा था मेरी आँखों से............
काश हम फिर उन पलों में ज़ी पाते...!
चलो फिर से आगंतुक वर्ष की खुशियों में खो जाए.....और इस अवसर पै तुम्हें याद न करू....ये केसे हो भला.....क्यूँकि.. 
ज़िन्दगी का कोई भी पल, कोई भी ख़ुशी,
कोई भी अवसर .........  तुम्हें याद किये बिना अधूरा सा लगता है................!'
"शीत ने अपने पांव पसारे
छुए वर्ष ने फिर से किनारे

वर्ष 2010 की समापन घड़ियों में
मेरी ओर से आप सब को
वर्ष 2011 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और मंगलकामनाएं ! "







तुम्हारा

मनीष मेहता

(एक ख्वाब हूँ में.........ख्वाब कभी पुरे नहीं होते...भटकते रहते है अक्सर दर-बदर)


गुरुवार, 22 जुलाई 2010

यादों के झरोखों से ......!!!



कल बरसों बाद अपने इस घर के छोटे से कमरे में आया,
तो यादों के एक कारवें से रूबरू हुआ...कमरे के हर एक कोने मै बसा यादों का धुंआ,मेरी आँखों से एक लम्हां चुरा गया..यादों का धुंआ आज फिर मेरी पलकों को भिगो गया...कमरें मै पड़ी एक पुरानी मेज़, उस पर सजी चंद किताबें..और उनपें जमीं धुल कि चांदर सी लिपटी हुई एक परत..मैने एक किताब को अपने हाथों मै लिया, और बारी-बारी से,अपने नरम हाथों से धूल कि चांदर को हटाया, तो यूँ लगा जैसे किताबें मेरा शुक्रिया अदा कर रही हो..मेज़ के नीचे दराज़ को खोल के देखा तो. उसमें पड़ी एक पुरानी डायरी मिली, जो कुछ बरस पुरानी थी (जो कॉलेज के ज़माने कि थी ) ..जिसमे ज़िन्दगी के कुछ हसीं पल कैद किये थे मैने..ज्यूँ ही डायरी के पन्नो को पलटने लगा..अचानक तुम्हारी एक तस्वीर के दीदार हुए..मैने तुम्हारी तस्वीर को अपने हाथों मै लिए निहारने लगा..वही बड़ी बड़ी आँखें ..वही मुस्कुराता हुआ चेहरा ..मुझे अनायास  बीते हुए पलों कि और ले गया...मेरे अनगिनत से सवालात .. और तुम्हारी खमोशी, शायद तुम्हारी तस्वीर से बातें करने लगा था उस पल मैं ..सब कुछ तो वैसे ही था ...फिर भी यूँ लगा कि मुझसे कह रही हो ..कि बहुत बदल गये हो तुम...मेज़ के दराजों मै तुम्हारी यादों को तलाशने लगा था मैं..शायद तुम्हारी यादों के उन लम्हों को छूना चाहता था मैं. नज़र इधर-उधर दोड़ाई तो ..तो एक ख़त मिला..जो तुमने लिखा था मुझसे कुछ बरस पहले..दिल कि धड़कने तेज़ होने लगी, और आँखों के सामने वो कॉलेज का ज़माना, वो मस्तियाँ,
वो घंटों बातें करना...उन पहाड़ी वाले रास्तों पै..बे-मतलब बे-परवाह मीलों चलना..सामने खड़े पेड़ों को गिनना ..
वो तुम्हारी ice-cream के लिए जिद करना ..पहाड़ों पै पत्थर से लकीरे खीचना, और अपने नाम के साथ मेरा नाम लिखना. याद है मुझे उस रोज़ जब हम उस पहाड़ी पै उस बड़े पेड़ के निचे बैठे थे ..बाँहों में बाहें डाले हुए..तुम्हारी आँखों मै आसूं के कुछ बुँदे थी...शायद इसलिए कि उस जगहा पै हमारी. आंखिरी मुलाक़ात थी ...और तुमने उस पल मेरा हाथ थामते हुए पूछा था, मनीष कब तक यूँ ही साथ रहोगे.......??? कब तक यूँ ही साथ दोगे ??
सहर कि हवाओं मै कहीं इस खुशबू को भुला तो ना दोगे..?? तुम्हारे इन सवालों से ...मेरी आँखें भी नम हो गई थी उस पल..याद है ना तुम्हें ........हाँ याद ही होगा ..


तुम्हें याद रखने कि आदत जो थी ..


अचानक कमरे मै किसी के आने कि आहट, ख्यालों कि दुनिया मै भटक रहे मुसाफिर को कब वापस हकीकत कि दुनिया मै ले आई..अहसास भी ना हुआ...सामने एक मित्र खड़ा था..शायद मुझसे मिलने आया था..बरसो बाद मिल रहे थे हम दोनों..मेरी आँखों से छलकते आसुओं कि चंद बूदें..और लब पै ख़ामोशी..सब कुछ बयां कर रही थी ...मेरे  खामोश लब आज फिर मेरे जेहन मै कुछ सवालात छोड़ गये...क्या तुम्हें अब भी मेरी याद आती है.........??
शायद  आती होगी....मुझे जो बहुत आती है....

तुम और तुम्हारी यादें ...जीने नहीं देती  मुझे .......!!!






   तुम्हारा .
मनीष मेहता


(एक ख़्वाब हूँ मै .........ख्व़ाब कभी मरते नहीं भटकते रहते है अक्सर दर-बदर )




(चित्र - गूगल से )

सोमवार, 15 मार्च 2010

कुछ लोग कभी अपने नहीं होते है.....

कुछ लोग कभी अपने नहीं होते है.....


कितने भी सपने देखो उनके.....


पर हर सपने तो सच नहीं होते है ना......!!


तुम कितना भी उसे अपना कहो.....


पर हाँ ये भी तो एक सच है कि............


कुछ लोग अपने हो कर भी,


कभी अपने नहीं होते है.........!!!


ज़रूर सोचियेगा कभी...






तुम्हारा


मनीष मेहता


शनिवार, 6 मार्च 2010

तुम्हारा ख्याल ..!!!

कल रात छत पै बैठा था,
तन्हाँ .......

हाथों में सिगरेट थी
और ख्यालो में तुम......

तुम रोज़ कि तरहा मुझसे
मस्तियाँ कर रही थी ..
में बादतन मुस्कुरा रहा था ..
सिगरेट के छल्लो में,
तुम्हारी तस्वीर बनती नज़र आ रही थी .........
ये सोच के कि,
तुम्हारी शक्ल धुंधली....
ना पड़ जाए
इसलिए जल्दी जल्दी
में सिगरेट की कश ले रहा था....
और सिगरेट के छल्ले बना रहा था..

श्श्स्श होंठ जला बैठा था...
उंगलियो के साथ .......
सिगरेट पूरी जल जो गई थी ..

उफ्फ्फ्फ़
तुम्हारा ख्याल जो अब तक
सिर्फ दिल जलाता था;
अब ना जाने क्या क्या जलाएगा...





तुम्हारा
मनीष मेहता



( चित्र - मनीष मेहता )





सोमवार, 1 मार्च 2010

तुम्हारा ख्याल.........और ये बारिश .....



याद है तुम्हें ...
पिछले बरस का वो मौसम, 
कितना प्यार लेके आया था..
 तुम्हारे और मेरे जीवन में........ 
उस पल को तो यूँ लगा था कि 
शायद ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जायेगी 
हर पल तुम्हरे खयालो में खोये रहना, 
कितना शुकून देता था मुझे.... 
खुद से बातें करना, कभी हँसना तो
अचानक से खामोश सा हो जाना..
 घंटो बारिश में भीगना..
 मीलों, पैदल चलना....फिर अचानक से ठहर जाना ...
 उस बरस का हर दिन हर पल कितना हसीं कितना 
खुशनुमा सा लगता था..

ना जाने क्यूँ...
अबके बरस 
बारिश कि बूंदों के 
पड़ते ही...
घर में छुप जाता हूँ में 
सहमा सहमा सा रहता हूँ....... 
अपने कमरे के झरोखों 
से अक्सर झांकता रहता हूँ 
बाहर.. 
लोगों को भीगते देखता हूँ.....
तो 
तुम्हारा ख्याल ..

 आंसुओं  कि बरसात कर देता है.. 
लगता है...
अबके बरस 
ये बारिश भी
कुछ कम बरसी मेरे घर..  
या मेरे आंसुओं  ने उन्हें 
बरसने ना दिया... 
शायद तुम जो नहीं हो अब के बरस..


उफ्फ्फ्फ़........ 
तुम्हारा ख्याल ....और ये बारिश..... जीने नहीं देता मुझे...!



तुम्हारा
मनीष मेहता

(चित्र- गूगल से) 

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

टूट गया कोई तेरे जाने से, हो सके तो लौट आना किसी बहाने से..!!

याद है ..........
तुम्हें, जब तुम कहा करती थीं कि चाहे जो हो जाए ...हम दोनों यूँ ही एक दूसरे से प्यार करते रहे या न रहे ...हम मिले या बिछुडे ...लेकिन में तुम्हे यूँ ही हर रोज़ एक मेल जरूर करुँगी एक sms ज़रूर करोगी ....हाँ शायद याद हो तुम्हें .....याद ही होगा.....१!!.

और मैं थोडा सा मुस्कुरा जाता था तुम्हारी इस बात पर ....शायद वो प्यार था तुम्हारा मेरे लिए जो ये सब कहता था ....कितना चाहा तुमने मुझे ...सच बहुत ज्यादा .....!

याद है मुझे जब तुम रो पड़ी थी ...कई दिन मुझ से न मिल पाने के कारण .... कैसे चुपाया था मैंने तुम्हें ...पास जो नहीं थी तुम .... उस पल तुम्हारी आँखों के आँसू महसूस किये थे मैंने ...दिल तो किया था कि तुम्हें सीने से लगा लूँ ...बाहों में भर लूँ ....और कहूँ ....पगली ऐसे भी कोई रोता है ....मैं तो हर पल तुम्हारे साथ हूँ ...तुम्हारी बातों में, यादों में ....उस नरमी में जो तुम महसूस करती हो हमेशा ...ऐसे जैसे तुम मेरे सीने से लिपटी हुई हो ....फिर तुम यूँ रोया न करो .....!!!

उस पल कितना मुश्किल हो गया था तुम्हें मनाना ....शायद बहुत मुश्किल .....और तुम कहने लगी थीं ....तुम्हारे बिना कैसे जी पाऊँगी ....मुमकिन नहीं शायद तुम्हारे बिना जीना ....और उस पल तुमने मुझे भी रुला सा ही दिया था .....मुझे पता है कैसे झूठ मूठ का हँस दिया था मैं .....और तुम बोली थी जाओ मैं बात नहीं करती तुमसे ....तुम हमेशा ऐसे ही करते हो......मेरी भी आँखें नम सी हो गई थी उस पल..........तुम भी न कितना परेशान करती थी मुझे.........पगली कही की.... क्या तुम अब भी वेसी ही हो.....??

याद है मुझे,तुम्हें मुझसे एक दिन की भी दूरी बर्दाश्त नहीं होती थी ....दिन मैं कितने बार फ़ोन जो करती थी तुम.है न.....घर से ऑफिस तक का सफ़र और ऑफिस से घर तक का सफ़र.मैं साथ जो रहता था तुम्हारे ......फ़ोन पे  .........और हाँ तुम्हें ये भी तो याद होगा न जब तुमने कहा था कि तुम मुझसे बात किये बिना २-३ घंटे से जायदा नहीं रह पाओगी.....लेकिन अब तो हमें बात न किया हुए बहुत टाइम हो गया आहे न..........शायद याद ही होगा तुम्हें...हाँ याद तो होगा ही ..... अब तो यूँ लगता है कि सदियाँ गुजर गयी हों ...कहने को अभी 1 माह हुआ है ....ऐसा शायद ही कभी हुआ हो जब तुम बिना मुझसे बात किये रह पायी हो ....कितना गहरा था हमारा प्यार और हमारा रिश्ता दोस्ती का रिश्ता ....मैं आज भी तुम्हारे हाथों की गर्मी महसूस करता हूँ अपने हाथों में ....और लगता है कि तुम यहीं कहीं हो मेरे पास ....अचानक से ही कोई हँसी गूंजती है मेरे कानों में .....क्या तुम आज भी खुश हो .....खुश हो न तुम ......तुम खुश हो अगर तो मैं समझूंगा कि में जी लूँगा यूँ ही इस कदर ...शायद तुम्हारी यादों को याद कर कर के .....तुम्हारी आँखें अभी भी मेरी आँखों में देखती नज़र आती हैं .....जब तुम आँखों से आँखों में देखते रहने का खेल खेलती थी ....कितना पसंद था तुम्हें वो खेल .....और तुम्हें जीत कर खुश होते देख मैं कितना खुश होता था ...हर बार तुमसे यही सोच हारा हूँ मैं .....इस बात को तुमसे बेहतर कोंन जानता है.....शायद कोई नहीं .....

मोहब्बत अपने आप में एक सुकून होती है ...एक ऐसी चाहत जिसको पाने की चाहत एक नशा बन जाती है ...और हर रोज़ , हर पल हम उस नशे में रहते हैं ....मोहब्बत पा लेने भर का नाम नहीं ...मोहब्बत में जो हो उसे मोहब्बत लफ्ज़ से भी मोहब्बत होती है ....इस से बढकर थी एक हमारी दोस्ती........या ये समझो की एक नशा ..........मेरे लिए तो नशा ही था ये सब....

ये दोस्ती भी एक नशा ही है ....हाँ हाँ एक नशा ही है ...जिसके लिए मैं लत्ती हो गया था....!!!

इंसानी दुनिया शायद समझती भी है और नहीं भी ....ये मिलावटें और नासमझी दो लोगों को जुदा कर देती है ...कभी कभी खुद इंसान अपनी गलती से मोहब्बत खो देता है ...फिर उसके पास कोई नहीं होता पर जिसने सच्ची मोहब्बत सच्ची दोस्ती की हो वो जिंदगी भर उस नशे को महसूस करता रहता है ...कभी ख़ुशी के रूप में तो कभी उसे गम बनाकर जिसे लफ्ज़ो मैं बयां करना मुश्किल सा लगता है थोडा ...रोता , सिसकता  है यादों मैं खो के...........हसीं मीठी यादें........बहुत मुश्किल है बयान करना ...........हाँ मुश्किल तो है ही.....!!!

याद है न तुम्हें... जब मैंने तुमसे ये बातें कही थीं ...और तुम बोली थी कि तुम्हें तो किसी फिल्म का डायलोग राईटर होना चाहिए था ...उस पल कितना हँसा था मैं ...जेसे पागल हो गया था मैं.........फिर तुमने ही मुझे चुप करया था,......याद है न .............मुझे भी याद है......!

इस दुनिया में इंसान ने शक की दीवारें खड़ी कर दीं ...देखा तुम जिन बातों पर हँसती थी ....आज उन्हीं दीवारों को तुम पार न कर सकीं ....उन्ही दीवारों ने हमारे बीच एक फ़ासला तय कर दिया ....शायद उसकी सज़ा मुझे मिली है आज....जिसमें मैं तड़प रहा हूँ या तुम तड़प रही हो........क्या है ये सब.......??? मैं गलत था??  खुद से भी ज़वाब पूछता हूँ मैं.....क्या किसी रिश्ते मैं ज्यदा ईमानदार था...इसलिए..........लेकिन जो भी था.......था मैं शायद बहुत ही बुरा.......क्या इतना बुरा था मैं या इतना बुरा हूँ .......इतना बुरा कि माफ़ भी न किया जा सकूँ...........या सच्चाई भी न बता सकू ....

मैं आज भी तुम्हारे किये हुए हर वादें पे यकीन करता हूँ....क्यूँ न करू तुमने जो किया था वादा.....

मैं आज भी तुम्हारे किये हुए वादे के सच होने का इंतज़ार करता हूँ ...कल रात तुम आई थी मेरे ख्वाबों में हकीकत बन कर ...पर आँख खोलने पर तुम न थी ...आजकल तुमने ये नया खेल शुरू कर दिया है ... हर रोज़ ये सोच कर सुबह उठता हूँ कि कहीं तुम्हारा मेल तो नहीं आया ...या तुम्हारा कोई sms तो नहीं आया............ किसी दिन अगर तुम्हारा सवाल आया तो ...कह सकूँ कि तुम्हारी साँसों को मैं आज भी महसूस करता हूँ .....तुम्हें बता सकूँ की कितना मिस करता हूँ मैं तुम्हें.............शयद कभी तो तुम्हारा मेल मिलेगा मुझे.....कभी तो तुम्हें भी मेरी याद आएगी.........कभी तो तुम जवाब दोगी मुझे..........मेरा दिल कहता हे मुझे बार बार ............कि तुम एक बार ज़रूर आओगी.......तूम वापस आओगी ..............हाँ हाँ तुम आओगी.........तुम झूट नहीं बोला करती थी मुझसे ............या कम बोला करती थी............आओगी न तुम...????........इंतजार है तुम्हारा ........

और हाँ तुम्हें देर तक नहाने कि आदत थी, ....और हाँ आइसक्रीम ज्यादा मत खाना मौसम बदल रहा है ......तुम्हें आइसक्रीम जो इतनी अच्छी लगती थी.........याद तो मेरी बहुत आती होगी न........मुझे भी आती है ......हाँ बहुत आती है...


तुम्हें पता है .........

जब रिश्तों को निभाने वाले बड़े हो जाए और रिश्तों के दायरे छोटे .....। तब काश ऐसा हो पाता कि माँ जिस तरह छोटे पड़ गए स्वेटर को उधेड़ कर फिर से नए सिरे से बुनती और हम उसे बड़े चाव से पहनते.......!!! ठीक उसी तरह अगर रिश्तों को भी सहेज कर रखा जा सकता तो कितना अच्छा होता या सही कहूँ तो उस एहसास को जिन्हें लोग रिश्तों का नाम देते हैं........!!! पर तुम्हारा और मेरा रिश्ता क्या था । ये मैं तब भी सोचता था और आज भी सोचता हूँ । क्या हमने अपने रिश्ते का कोई दायरा भी बनाया था । मुझे ठीक से याद नहीं कि इस पर भी हमारी कभी बात हुई हो या शायद हम इन सभी रिश्तों से अलग कहीं जुड़े हुए थे । कहीं किसी कोर पर गहरे से गाँठ बंधी हुई थी । जिसको देख पाना और समझ पाना कभी बहुत आसान जान पड़ता तो कभी मालूम ही न चलता कि भला रिश्तों का भी ऐसा कोई बंधन होता है.......!!!

एहसास को नाम देना मैंने तुमसे ही सीखा ....। तुम्हारे पास हर एहसास के लिए एक नाम जो हुआ करता था ........। हर एहसास का नाम कितना जुदा था । जो इस दुनिया के दिए हुए नामो से बिल्कुल नए ........। मुझे ठीक से याद है कि दर्द, ख़ुशी, दुःख, पीड़ा, हर्ष, इन सभी नामों से कितने अलग थे तुम्हारे दिए हुए नाम...... । उन एहसासों के नाम ..!!!

इन दायरों के बाहर भी एक दुनिया है ....... ये तुमने ही मुझे बताया ....... वो दायरे जो हम खुद बना लेते हैं या हमें बने हुए मिलते हैं । तुम कैसे उन सभी दायरों के बाहर, हमेशा मुझे मुस्कुराती हुई खड़ी मिलती........ हाँ तुम जब हाथ थाम कर मुझे उन दायरों से बाहर ले गयीं तो वो दुनिया अलग थी ......... जिसका एहसास करना तो बहुत आसान हुआ करता लेकिन तुम्हारी आँखों में झांकते हुए उन एहसासों को नाम देना उतना ही मुश्किल । हाँ बहुत मुश्किल ..............!!!

पर जब भी तुम साथ चलते हुए यूँ ही मेरा हाथ थाम लेती तो यूँ लगता कि मुझे उस एहसास का नाम मिल गया हो । तुम्हारे साथ उन भूले हुए दायरों और बहुत कहीं पीछे छूट गए रिश्तों के नाम को मैं याद ना तो किया करता और ना ही मुझे याद रहते.......... ।

ऐसे कई अनगिनत तुम्हारे पूँछे गए सवालों को में अपने दिलो दिमाग में संभाल कर रखता और तुम्हारे इंतज़ार में उन्हें बार-बार, एक-एक करके निकालता .......... शायद किसी सवाल का जवाब मुझे मिल जाए । हाँ उन सवालों में छुपी हुई, घुली हुई तुम्हारी यादों को में एक एक करके हाथ पर रखता और अपने चेहरे पर मल लेता । देखना चाहता कि तुम्हारी यादों के साथ मेरा चेहरा कैसा दिखता है ......!!! सच कहूँ तो मैं ठीक से आज भी अपने चेहरे को उन यादों के साथ महसूस करने की कितनी भी कोशिश करूँ वो चेहरा कहीं दिखाई नहीं पड़ता........ शायद वो चेहरा तुम अपने साथ जो ले गई हो .......!!! हाँ साथ ही ले गई होगी ......!!! नहीं तो मुझे मेरा चेहरा यूँ अजनबी सा ना लगता ...........अजनबी तो न था मैं कभी यूँ खुद से.........!!!

हाँ अगर कुछ याद रहता है तो वो पल जब तुमने उस रोज़ हमारे आस पास उन सभी एहसासों को बुला लिया था और हम रिश्तों के दायरों से बहुत दूर कहीं एहसासों की बसाई हुई दुनिया में खुद को पाया हुआ महसूस कर रहे थे.........! हाँ वो पल सबसे जुदा था । मैंने खुद को तो पाया ही, तुम्हें भी पा लिया था .......!

रिश्तों के दायरों से दूर और तुम्हारे-मेरे एहसासों के नज़दीक,....... मैं तुम्हें आज भी खुद के साथ पाता हूँ । हाँ यही तो एक एहसास है जो सबसे जुदा, सबसे सुखद है और जो हमेशा मेरे साथ रहता है......!!!

ये एहसास तुम्हारे होने का है.............जो हर पल मेरे साथ रहता है...........हर पल तुमें खुद के करीब पता है.......!! मैने जो देखा था ख्वाब वो अब भी मेरी पलकों पे ज़िंदा है .....कहते हें 'ख्वाब कभी नहीं मरते' और जो मर जाए तो वो ख्वाब ही कैसे...जानती हो तुमसे ये मैने एक बार कहा था...याद है ना तुम्हें...हाँ याद ही होगा...हाँ शायद... .......सोचता हूँ 'मरे हुए ख्वाब कैसे होते होंगे'...जिनका जीते जी कोई वजूद ना रहा....उन मरे हुए ख्वाबों का क्या होता होगा......क्योंकि किसी भी ख्वाब को 'शहीद' तो घोषित नहीं किया जा सकता......हे न ...!!!हाँ उसे थपथपी देकर सुलाया जरूर जा सकता है....हाँ शायद...!!!जब मैंने ये कहा था तब तुम कैसे सुनती रह गई थी मुझे देखती रह गयी थीं मुझे जैसे ......तुम मुझे इतने प्यार से जो सुनती थी.......और मैं अनजान सा खोया सा उस रेत पर आडी तिरछी लकीरें खींचे जा रहा था...बिलकुल जिंदगी की तरह...जो कमबख्त सीधी चलने का नाम नहीं लेती...काश इसमें भी ट्रेन के स्टेशन की तरह कोई बंदोबस्त होता....तो हम भी एक स्टेशन से चढ़ अपने मनपसंद स्टेशन तक जाकर उतर जाते...और कुछ पल सुस्ताने के बाद...आगे की सोचते...मगर शायद खुदा को ये कहाँ मंजूर... पर अगर ख्वाब मर जाते हैं तो वो यहीं कहीं भटकते होंगे हमारे आस पास...है ना...ऐसा मैं जब कहता था तो तुम कैसे प्यार से मुझे सुनने लगती थीं....ये भी अजीब इत्तेफाक है...नहीं इत्तेफाक नहीं हो सकता...कल रात को जब उनींदा सा अपनी हसरतों को खूँटी पर टांग जब बाहर चहल कदमी कर रहा था तो जानती हो क्या हुआ...एक मरा हुआ ख्वाब अचानक से मेरे पास आया...उसने देखा मुझे...मुस्कुराया...ठीक वैसे ही जैसे तुम मुस्कुराती थीं...आँखों से उदासी  के धुंए की लड़ी को हटाते हुए मैंने उसे गौर से देखा...एक पल वो मुझे तुमसा जान पड़ा...वही बड़ी बड़ी आँखें...वही शक्ल..वही चेहरे की मासूमियत .......वही अंदाज... शायद वो तुम ही थी......तुम ही थी न....मैं जनता हूँ वो तुम ही थी..........!!!


कहने लगी कैसे हो मनीष ......??..यही कहती थी न तुम भी........मैं मुस्कुराया...ठीक तो हूँ मैं...ठीक हूँ...वो आगे बड़ी.......मुस्कुराते हुए मेरे गालों को थपथपाया.....बोली मैं ख्वाब हूँ...तुम्हारा सबसे हसीन ख्वाब...और चलने को हुआ...फिर मुडा,और 'हाँ उसका भी'...मैंने उसे गौर से देखा...वो वही चाहता था कि मैं मुस्कुराऊं...ठीक वैसे ही जैसे तुम हमेशा चाहती थीं...वो हाथ हिलाते हुए बोली मैं यहीं हूँ तुम्हारे आस पास...और आँखों से ओझल हो गई ...ये तुम्हारा ही ख्वाब था....हाँ तुम्हारा ही होगा...तुमने ही इसे छोडा है मेरा साथ देने के लिए...है ना...हाँ तुम ठीक ही कहती थीं ख्वाब कभी नहीं मरते...वो हमारे आस पास ही तो रहते हैं...बिल्कुल पास...इतने कि हाथ से छुओ तो एक नरमी सी दे जाएँ ....अबकी जो दोबारा मिला तो उससे पूछूँगा क्या तुम आज भी आइसक्रीम खाती हो.....क्या तुम अब भी घंटो नहाते रहती हो........क्या तुम्हें आज भी मेरे sms का बेसब्री से इंतजार रहता है.....क्या बिना मेरे sms पड़े तुम्हें अभी भी नीद नहीं आती है.........नहीं आती होगी शायद ......हाँ नहीं आती होगी....क्यूंकि तुम ही कहती थी न........क्या तुम्हें आज भी ठण्ड में पंखा चलाना भाता है.....क्या तुम आज भी तरह तरह की शक्लें बनाती हो...क्या तुम आज भी हंसते हंसते गुमशुम हो जाती हो.......क्या तुम्हें आज भी मेरी वो प्यारी बातें याद आती है.......शायद आती होंगी........क्यूंकि मुझे तो आते हें........तुम्हें भी तो हर बात याद रहती थी.........

हाँ बहुत याद है तुम्हारा वो सोंग ............. "तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई, यूँही नहीं दिल लुभाता कोई....."

अच्छा गा लेती थी न तुम......सच्ची मैं अच्छा गाती थी .....तुम.......और मेरा वो

song ------कोंन सा था.....हाँ याद आया........वो बेमिसाल  फिल्म का था....तुमें भी याद हो गया था..............अब भी याद होगा है न..........इतनी बार जो सुनाया था मैने था मैने तुम्हें ............"एक रोज़ मैं तड़प के, इस दिल को थाम लूँगा, मेरे हसीं कातिल... मैं तेरा नाम लूँगा....!!" अच्छा था न............मैं आज भी वैसा  ही गाता हूँ.............बिलकुल हुबहू ..पर कोई सुनता ही नहीं है न.............कोई बताता ही नहीं कैसा  लगा...........कोई क्लेअपिंग नहीं देता है अब...............तुम जो नहीं हो न..........तो कोंन देगा ....कोई नहीं ......हाँ कोई ही नहीं .तुम्हारे दोस्ती के इतने करीब जो था कि सबसे दूरियां बना रखी थी मैने.......ये सोच के मुस्कुरता देता हूँ..........और तुम्हें तलाशता हूँ मैं अकसर उस पल मैं यादों मैं.............अपने डायरी के सुनसान पड़े पन्नो मैं.......अपने चेहरे मैं ........शायद कही मिल जाओगी तुम एक याद बन के..........तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा मिल जायेगा मुझे..बस यही सोच के....हाँ हाँ यही सोच के....तो मैं मुस्कुराता हूँ मैं..........!!!

तुम आज भी...ख्वाब बुनती हो........न ........शायद बुनती होगी.....मेरी तरहां ..........!!!

यूँ तो जिंदगी में कई मुश्किल दौर से गुजरा...और गुजरता हुआ यहाँ तक पहुंचा.....शायद हमारे बीच भी कई मुश्किले आई........तुम तो सब जानती हो....आजकल जब भी मैं अपनी आँखें बंद करके सोचता हूँ तो पता है सबसे मुश्किल घडी कौनसी लगती है...तुम्हें पा लेने और फिर खो देने के एहसास का पूर्णतः सच होना...तुम्हें पा लेने से पहले जब घंटो तुमसे गुफ्तगू करता था...वो तुम्हारी ढेर सारी बातें...जो कभी मुझे बच्चों की सी हरकतें लगती और कभी एकदम से बड़ों की सी...और इन सबके बीच वो ढेर सारे खुशियों के पल...उन्हें दामन में समेट लेने का मन करता.........शायद बच्ची ही थी तुम......हरकतें जो बच्चो सी करती थी न.......छोटी सी बात पे बुरा मान जाना ........कितना मुश्किल होता था तुमें मानना ..शायद सबसे मुश्किल.........ये मुझसे बेहतर कोंन जनता है,.......किसी को इतना नहीं मनाया है न.......!!! कुछ दिन तक तो एहसास नहीं भी न हुआ कि तुम नहीं हो यहाँ ...होता भी केसे कभी न साथ छोड़ने का जो वादा किया था......तुमने.....हाँ तुमने ..याद तो होगा न अभी भी....शायद याद ही होगा.....!!!

कई रोज़ बाद जब एहसास हुआ कि ये मुझे क्या हो गया है...ये मेरा दिल आखिर तुम्हारे होने और ना होने पर अपनी शक्लो सूरत क्यों बदल लेता है...और तुम्हारी हाँ और ना की आशंकाओं से घिरे मेरे दिल का क्या हाल रहा उन दिनों...ये तो दिल ही जानता है...कभी दिल में ख्याल आता कि तुम्हारे चेहरे को अपने हाथों में लेकर...तुम्हारी आँखों में आँखें डालकर कहूँ कि........... "हाँ तुम ही तो हो जिसके होने का एहसास हरदम मेरे साथ रहता है"...कभी हथेलियों पर.......कभी पीठ पर तुम्हारी उँगलियों से बनायीं गयी बेतरतीब सी शक्लों से...कभी जेब में पड़े तुम्हारे नर्म एहसास से...कभी कई घड़ियों की टिकटिक तक मेरी आँखों में तुम्हारी आँखों के एहसास से.......ये तुम्हारा एहसास भी न ..........बहुत रुलाता है मुझे..........!!!

क्या करूँ तुम्हें याद रखने कि जो आदत है.......हाँ तुम्हें न भूल पाने कि जो आदत है........

ये आदतें भी बड़ी अजीब होती हैं, हें न.......ये भूलना भी तो एक आदत है....और हाँ याद रखना भी एक आदत.......भूल जाना एक बीमारी है न....हाँ सुना है मैने.....! फिर याद करना क्या है....?? तुमें पता है........शायद नहीं पता होगा.......मुझे भी नहीं पता है न इसलिए........मैं ही तो बताता था न तुम्हें ......मुझसे ही तो पूछती थी तुम.....हर बात.....कितना समझाता था मैं तुम्हें ......है न........क्या अब भी कोई तुम्हें समझाता है मेरी तरहा...शायद नहीं ...........कोई नहीं .......हर कोई नहीं हो सकता है न....... मैं याद रखने की कोशिश करता हूँ कि तुम्हारी आँखें मुझे कुछ याद दिलाना चाहती हैं ...पर मैं भूल जाता हूँ.....

खासकर जब आप याद रखना चाहो तो भूल जाते हो......जैसे मैं याद रखने की कोशिश करता हूँ कि तुम्हारी आँखें मुझे कुछ याद दिलाना चाहती हैं ...पर मैं भूल जाता हूँ.....मुझे आज भी ये यकीं है तुम वापस आओगी..........एक बार मुझसे बात ज़रूर करोगी..........मुझे तुम्हारी दोस्ती कि ज़रूरत जो है..........आओगी न तुम............बात करोगी न फिर से..तुम ही कहती थी न कि .........बाबु हम हर एक मुश्किल को मिल के हल करेंगे.........हाँ आज भी तो मैं तुम्हारे साथ हूँ न.......फिर क्या गम है तुम्हें........एक बार फिर से वापस तो आ जाओ..........मेरे ख़ातिर ..............आओगी न तुम....

शायद आओगी तुम..................मेरा दिल कहता है.............दिल कभी झूठ नहीं बोलता है मुझसे..............

शायद एक बिखरते हुए ख्वाब को, एक टूटे हुए दिल को, एक बुझते हुए दिए को........फिर से तुम्हारी ज़रूरत है.........शायद फिर से इस उजड़े हुए दिल मैं कोई फूल खिलेगा........इस दिल का आशियाँ बसेगा ........दिल का दिया फिर से रोशन होगा.............!!!


इन्ही शब्दों के साथ

तुम्हारे इंतजार मैं ...........

   तुम्हारा....
     मनीष मेहता

(टूट गया कोई तेरे जाने से, हो सके तो लौट आना किसी बहाने से.!!!)

इस खमोशी की वजहा क्या है.... ??

"इस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में ख्वाबों कि दुनिया का मैं भी एक भटकता हूँ मुसाफिर, चला जा रहा हूँ .....जा कहाँ रहा हूँ शायद अब तक नहीं पता मुझे, बस चल रहा हूँ शायद इसलिए कि रुकना मुझे कुबूल नहीं नहीं ...हर चेहरे के पीछे ना जाने कितने चेहरे छुपे हैं यहाँ......रिश्तों को टूटते देखा है अक्सर मैने ......जाने क्या चाहता हूँ खुद से और क्यूँ भटक रहा हूँ अब तक एक सवाल है मेरे लिए जो हर वक़्त परेशान करता है मुझे.....जिसका ज़वाब तलाश रहा हूँ मैं अब तक... ...अपनी एक ख्वाबों कि दुनिया बसा रखी है मैने, .........खुद को खुद का सच्चा साथी समझता हूँ, .......हमसफर समझता हूँ मैं....वेसे तो कुछ भी खाश नहीं है मुझमें, फिर भी ना जाने क्यूँ भीड़ से अलग चलता हूँ मैं...लोगो को और उनके रिश्तो कि देख के अक्सर खामोश हो जाता हूँ मैं....!!


अजीब सी है ये दुनिया अजीब से यहाँ रिश्ते, कहने को तो सब है अपने पर खुद को तलाशता हूँ तो बेहद अकेला मह्सुश करता हूँ मैं.. अक्सर उन लोगो को ही अपनी उदासी का वज़ह बनते देखा है मैने ....जो अक्सर कहा करते थे कि "तुम्हारे चेहरे पै मुस्कान अच्छी लगती है, तुम्हारी हंसी के लिए हम कुछ भी कर सकते है......" वो लोग ही मेरे मौत का सामान क्यूँ इक्कठा करते हैं जो खुद ही मुझे जिंदगी जीने कि दुआ देते थे ....क्या इस दुनिया का हर एक शक्स अदाकार है....??? क्या हर कोई शक्लो-सूरत बदलने कि कि कला मैं महारत है.......?? क्या हर किसी चेहरे के पीछे कईं चेहरे छुपे है...??? शायद दुनिया बहुत आगे निकल आई है और लोग भी...जहां असली और नकली का फरक करना भी एक हुनुँर है....जो शायद मेरे पास नहीं है.........इसलिए दिल को तसल्ली देता हूँ कि कही सुन रखा है कि "हर किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता....यूँ तो अक्सर ख्वाबों मैं खोये रहता हूँ मैं.... अपनी एक ख्वाबों की दुनिया जो बसा रखी है मैने, हर एक को खुश देखना ही ज़िन्दगी का मकसद है मेरा, शायद उस मुस्कान के लिए तो खुदा से भी लड़ जाता हूँ मैं......!!


कभी कभी रात के अंधेरो मैं सुनसान पड़े छत पै बैठ के सोचता हूँ मैं. तो मेरी खमोशी भी बहुत कुछ कहती है मुझे, जब भी रातों को अपने कमरे मैं बैठ कर सोचता हूँ तो मेरे कमरे मैं बिखरे चंद किताब, बिखरे हुए कुछ ख़त मुझे अक्सर मुझे सवालात करते है,मेरे डायरी के सुनसान पड़े पन्ने मुझसे पूछते है..."क्यूँ खामोश हो ???".....शायद कुछ सवालात छोड़ जाती है हर बार मेरे लिए....जिनके जवाब तलशता रहता हूँ मैं अक्सर रातों के उन अंधेरों ... बैचेन सा हो जाता हूँ मैं..!!




....शायद हर रोज़ इसी कसमकस मैं ज़िन्दगी गुज़र जाती है की कभी तो ज़वाब मिलेगा मुझे मेरे उन सवालातो..." कि क्यूँ अक्सर खामोश हो जाता हूँ मैं ...???, क्या सोचता रहता हूँ मैं अक्सर..??" सोचता हूँ कभी मिलूँगा खुदा से फ़ुरसत में ..........तो पूछुंगा की इस खमोशी की वजहा क्या है ?? इस ज़िन्दगी कि ज़ीने कि वजहा क्या है.....?????









तुम्हारा...
मनीष मेहता
(एक ख्व़ाब.. ख्व़ाब कभी मरते नहीं, भटकते रहते है  अक्सर दर-बदर.....)


(चित्र:- मनीष मेहता)

तुम्हारा ख्याल ज़ीने नहीं देता मुझे.....



"कल रात ख्वाबों के शहर मैं भटकते भटकते बहुत दूर तक निकल आया था....
सुनसान पड़े सड़क मैं दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था,
 ख्यालों मैं तुम थी बस....जा रहा था अपनी धुन मैं...
अकेले. सामने दोराहा देख कर सोचा किस और जाऊं.....
ना चाहते हुए भी राईट साइड को मुड गया ..कुछ कदम चलते ही
अचानक से एक नुक्कड़ पै तुम्हारी शक्ल से मिलती हुई शक्ल से रूबरू हुआ मैं.
वही बड़ी-बड़ी आँखें, वही चेहरा,......सब कुछ तो तुम्हारी तरहा ही था,
मेरे सुस्त पड़े कदम अचानक से तेज़ हो गये.....
पास आके देखा तो तुम्हारे इस हसंते हुए चेहरे पै उदासी के ये बादल पहली बार देखा था मैने....
शायद उदास थी तुम ...किसी के इंतजार कर रही थी ....
मैने पास आके पूछा ....."केसी हो तुम ? क्या तुम मेरा इंतजार कर रही हो आज भी ...??
क्या तुम अब भी नाराज़ हो मुझसे ..?? याद तो मेरी आती हो होगी ना..???
और भी ना जाने कितने सवालात कर बैठा था एक साथ मैं तुमसे....
बहुत सारी बातें जो करनी थी तुमसे..... ...तुम खामोश थी...
कुछ पल इंतजार किया की तुम अब तो कुछ कहोगी,
अपनी खमोशी को जुबां दोगी......तुमने अपनी पलकों को उठा कर देखा मुझे...
मेरे चहेरे कि रौनक देखने लायक थी उस पल ....तुम अब भी खामोश थी .
शायद कुछ सोच रही थी तुम..! शायद मेरे सवालो का ज़वाब जो देना था तुम्हें.....
ज्यूँ ही आगे बड़ा तुम्हें छुने के लिए .....सामने पड़े पत्थर से टकरा गया ..
सामने देखा .तो वहां ना तुम थी ना कोई ख़्वाब....उजाले मैं आके देखा तो ......
पैर से खून रिस  रहा था.....शायद पत्थर नुकीला था.....

तुम्हारा ख्याल जो अब तक दिल जलता था...अब ना जाने क्या क्या जलाएगा .......
ये तुम्हारा ख्याल ज़ीने नहीं देता है मुझे.............!!!"

(तुम्हारी तलाश मैं भटक रहां हूँ ख्वाबों-ख्यालो में दर-बदर )


सिर्फ तुम्हारा ......


( मनीष मेहता )

("टूट गया कोई तेरे जाने से, हो सके तो लौट आ किसी बहाने से....")



(चित्र :- मनीष मेहता)

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता.

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता

सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता

कोई सह लेता है कोई कह लेता है,

क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता

आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे

यहाँ ठोकर देने वाला है हर पत्थर नही होता

ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो

इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता

कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म न कर ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता...



(चित्र :- मनीष मेहता)