"इस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में ख्वाबों कि दुनिया का मैं भी एक भटकता हूँ मुसाफिर, चला जा रहा हूँ .....जा कहाँ रहा हूँ शायद अब तक नहीं पता मुझे, बस चल रहा हूँ शायद इसलिए कि रुकना मुझे कुबूल नहीं नहीं ...हर चेहरे के पीछे ना जाने कितने चेहरे छुपे हैं यहाँ......रिश्तों को टूटते देखा है अक्सर मैने ......जाने क्या चाहता हूँ खुद से और क्यूँ भटक रहा हूँ अब तक एक सवाल है मेरे लिए जो हर वक़्त परेशान करता है मुझे.....जिसका ज़वाब तलाश रहा हूँ मैं अब तक... ...अपनी एक ख्वाबों कि दुनिया बसा रखी है मैने, .........खुद को खुद का सच्चा साथी समझता हूँ, .......हमसफर समझता हूँ मैं....वेसे तो कुछ भी खाश नहीं है मुझमें, फिर भी ना जाने क्यूँ भीड़ से अलग चलता हूँ मैं...लोगो को और उनके रिश्तो कि देख के अक्सर खामोश हो जाता हूँ मैं....!!
अजीब सी है ये दुनिया अजीब से यहाँ रिश्ते, कहने को तो सब है अपने पर खुद को तलाशता हूँ तो बेहद अकेला मह्सुश करता हूँ मैं.. अक्सर उन लोगो को ही अपनी उदासी का वज़ह बनते देखा है मैने ....जो अक्सर कहा करते थे कि "तुम्हारे चेहरे पै मुस्कान अच्छी लगती है, तुम्हारी हंसी के लिए हम कुछ भी कर सकते है......" वो लोग ही मेरे मौत का सामान क्यूँ इक्कठा करते हैं जो खुद ही मुझे जिंदगी जीने कि दुआ देते थे ....क्या इस दुनिया का हर एक शक्स अदाकार है....??? क्या हर कोई शक्लो-सूरत बदलने कि कि कला मैं महारत है.......?? क्या हर किसी चेहरे के पीछे कईं चेहरे छुपे है...??? शायद दुनिया बहुत आगे निकल आई है और लोग भी...जहां असली और नकली का फरक करना भी एक हुनुँर है....जो शायद मेरे पास नहीं है.........इसलिए दिल को तसल्ली देता हूँ कि कही सुन रखा है कि "हर किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता....यूँ तो अक्सर ख्वाबों मैं खोये रहता हूँ मैं.... अपनी एक ख्वाबों की दुनिया जो बसा रखी है मैने, हर एक को खुश देखना ही ज़िन्दगी का मकसद है मेरा, शायद उस मुस्कान के लिए तो खुदा से भी लड़ जाता हूँ मैं......!!
कभी कभी रात के अंधेरो मैं सुनसान पड़े छत पै बैठ के सोचता हूँ मैं. तो मेरी खमोशी भी बहुत कुछ कहती है मुझे, जब भी रातों को अपने कमरे मैं बैठ कर सोचता हूँ तो मेरे कमरे मैं बिखरे चंद किताब, बिखरे हुए कुछ ख़त मुझे अक्सर मुझे सवालात करते है,मेरे डायरी के सुनसान पड़े पन्ने मुझसे पूछते है..."क्यूँ खामोश हो ???".....शायद कुछ सवालात छोड़ जाती है हर बार मेरे लिए....जिनके जवाब तलशता रहता हूँ मैं अक्सर रातों के उन अंधेरों ... बैचेन सा हो जाता हूँ मैं..!!
....शायद हर रोज़ इसी कसमकस मैं ज़िन्दगी गुज़र जाती है की कभी तो ज़वाब मिलेगा मुझे मेरे उन सवालातो..." कि क्यूँ अक्सर खामोश हो जाता हूँ मैं ...???, क्या सोचता रहता हूँ मैं अक्सर..??" सोचता हूँ कभी मिलूँगा खुदा से फ़ुरसत में ..........तो पूछुंगा की इस खमोशी की वजहा क्या है ?? इस ज़िन्दगी कि ज़ीने कि वजहा क्या है.....?????
तुम्हारा...
मनीष मेहता
(एक ख्व़ाब.. ख्व़ाब कभी मरते नहीं, भटकते रहते है अक्सर दर-बदर.....)
(चित्र:- मनीष मेहता)
(चित्र:- मनीष मेहता)
no word............outstnd
जवाब देंहटाएंdo not count what u hav lost,,
जवाब देंहटाएंjust c wat u hav now,,
bcoz past never comes back ..
but sumtimes future can giv u back...
ur lost glory...
(एक ख्व़ाब.. ख्व़ाब कभी मरते नहीं, भटकते रहते है अक्सर दर-बदर.....)
जवाब देंहटाएंAwesume line ....