याद है तुम्हें ...
पिछले बरस का वो मौसम,
कितना प्यार लेके आया था..
तुम्हारे और मेरे जीवन में........
उस पल को तो यूँ लगा था कि
शायद ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जायेगी
हर पल तुम्हरे खयालो में खोये रहना,
कितना शुकून देता था मुझे....
खुद से बातें करना, कभी हँसना तो
अचानक से खामोश सा हो जाना..
घंटो बारिश में भीगना..
मीलों, पैदल चलना....फिर अचानक से ठहर जाना ...
उस बरस का हर दिन हर पल कितना हसीं कितना
खुशनुमा सा लगता था..
ना जाने क्यूँ...
अबके बरस
बारिश कि बूंदों के
पड़ते ही...
घर में छुप जाता हूँ में
सहमा सहमा सा रहता हूँ.......
अपने कमरे के झरोखों
से अक्सर झांकता रहता हूँ
बाहर..
लोगों को भीगते देखता हूँ.....
तो
तुम्हारा ख्याल ..
आंसुओं कि बरसात कर देता है..
लगता है...
अबके बरस
ये बारिश भी
कुछ कम बरसी मेरे घर..
या मेरे आंसुओं ने उन्हें
बरसने ना दिया...
शायद तुम जो नहीं हो अब के बरस..
उफ्फ्फ्फ़........
तुम्हारा ख्याल ....और ये बारिश..... जीने नहीं देता मुझे...!
तुम्हारा
मनीष मेहता
(चित्र- गूगल से)