मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

तुम्हारा ख्याल ज़ीने नहीं देता मुझे.....



"कल रात ख्वाबों के शहर मैं भटकते भटकते बहुत दूर तक निकल आया था....
सुनसान पड़े सड़क मैं दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था,
 ख्यालों मैं तुम थी बस....जा रहा था अपनी धुन मैं...
अकेले. सामने दोराहा देख कर सोचा किस और जाऊं.....
ना चाहते हुए भी राईट साइड को मुड गया ..कुछ कदम चलते ही
अचानक से एक नुक्कड़ पै तुम्हारी शक्ल से मिलती हुई शक्ल से रूबरू हुआ मैं.
वही बड़ी-बड़ी आँखें, वही चेहरा,......सब कुछ तो तुम्हारी तरहा ही था,
मेरे सुस्त पड़े कदम अचानक से तेज़ हो गये.....
पास आके देखा तो तुम्हारे इस हसंते हुए चेहरे पै उदासी के ये बादल पहली बार देखा था मैने....
शायद उदास थी तुम ...किसी के इंतजार कर रही थी ....
मैने पास आके पूछा ....."केसी हो तुम ? क्या तुम मेरा इंतजार कर रही हो आज भी ...??
क्या तुम अब भी नाराज़ हो मुझसे ..?? याद तो मेरी आती हो होगी ना..???
और भी ना जाने कितने सवालात कर बैठा था एक साथ मैं तुमसे....
बहुत सारी बातें जो करनी थी तुमसे..... ...तुम खामोश थी...
कुछ पल इंतजार किया की तुम अब तो कुछ कहोगी,
अपनी खमोशी को जुबां दोगी......तुमने अपनी पलकों को उठा कर देखा मुझे...
मेरे चहेरे कि रौनक देखने लायक थी उस पल ....तुम अब भी खामोश थी .
शायद कुछ सोच रही थी तुम..! शायद मेरे सवालो का ज़वाब जो देना था तुम्हें.....
ज्यूँ ही आगे बड़ा तुम्हें छुने के लिए .....सामने पड़े पत्थर से टकरा गया ..
सामने देखा .तो वहां ना तुम थी ना कोई ख़्वाब....उजाले मैं आके देखा तो ......
पैर से खून रिस  रहा था.....शायद पत्थर नुकीला था.....

तुम्हारा ख्याल जो अब तक दिल जलता था...अब ना जाने क्या क्या जलाएगा .......
ये तुम्हारा ख्याल ज़ीने नहीं देता है मुझे.............!!!"

(तुम्हारी तलाश मैं भटक रहां हूँ ख्वाबों-ख्यालो में दर-बदर )


सिर्फ तुम्हारा ......


( मनीष मेहता )

("टूट गया कोई तेरे जाने से, हो सके तो लौट आ किसी बहाने से....")



(चित्र :- मनीष मेहता)

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता.

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता

सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता

कोई सह लेता है कोई कह लेता है,

क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता

आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे

यहाँ ठोकर देने वाला है हर पत्थर नही होता

ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो

इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता

कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म न कर ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता...



(चित्र :- मनीष मेहता)

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

"Barish aur main,

"Barish aur main,dono ek jaisay hain,

rote hain,tadapte hain,



sisakte hain,

machalte hain,



 bond bond dard ka!

khamoshi se apni ragoon main utar lete hain,
 

aur phr muskura kar chupke se..

chup ki chaddar odh lete hain..
 

haan sahyad,BARISH aur MAIN dono ek hi jaisay hain!"





(pic:- model manish mehta)