कल बरसों बाद अपने इस घर के छोटे से कमरे में आया,
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वो तुम्हारी ice-cream के लिए जिद करना ..पहाड़ों पै पत्थर से लकीरे खीचना, और अपने नाम के साथ मेरा नाम लिखना. याद है मुझे उस रोज़ जब हम उस पहाड़ी पै उस बड़े पेड़ के निचे बैठे थे ..बाँहों में बाहें डाले हुए..तुम्हारी आँखों मै आसूं के कुछ बुँदे थी...शायद इसलिए कि उस जगहा पै हमारी. आंखिरी मुलाक़ात थी ...और तुमने उस पल मेरा हाथ थामते हुए पूछा था, मनीष कब तक यूँ ही साथ रहोगे.......??? कब तक यूँ ही साथ दोगे ??
सहर कि हवाओं मै कहीं इस खुशबू को भुला तो ना दोगे..?? तुम्हारे इन सवालों से ...मेरी आँखें भी नम हो गई थी उस पल..याद है ना तुम्हें ........हाँ याद ही होगा ..
तुम्हें याद रखने कि आदत जो थी ..
अचानक कमरे मै किसी के आने कि आहट, ख्यालों कि दुनिया मै भटक रहे मुसाफिर को कब वापस हकीकत कि दुनिया मै ले आई..अहसास भी ना हुआ...सामने एक मित्र खड़ा था..शायद मुझसे मिलने आया था..बरसो बाद मिल रहे थे हम दोनों..मेरी आँखों से छलकते आसुओं कि चंद बूदें..और लब पै ख़ामोशी..सब कुछ बयां कर रही थी ...मेरे खामोश लब आज फिर मेरे जेहन मै कुछ सवालात छोड़ गये...क्या तुम्हें अब भी मेरी याद आती है.........??
शायद आती होगी....मुझे जो बहुत आती है....
तुम और तुम्हारी यादें ...जीने नहीं देती मुझे .......!!!
तुम्हारा .
मनीष मेहता
(एक ख़्वाब हूँ मै .........ख्व़ाब कभी मरते नहीं भटकते रहते है अक्सर दर-बदर )
(चित्र - गूगल से )