गुरुवार, 17 जुलाई 2008

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है !

जब यही जीना है दोस्तों, तो फ़िर मरना क्या है !!

पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है !

भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है !!

सीरियल्स् के किर्दारों का सारा हाल है मालूम !

पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुर्सत कहाँ है !!

अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यूं नहीं !

108 हैं चैनल् फ़िर दिल बहलते क्यूं नहीं !!

इन्टरनैट से दुनिया के तो टच में हैं !

लेकिन पडोस में कौन रहता है जानते तक नहीं !!

मोबाइल, लैन्डलाइन सब की भरमार है !

लेकिन जिग्ररी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं !!

कब डूबते हुए सुरज को देखा था, याद है !

कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है !!

तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़् के करना क्या है !

जब् यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है !!!

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है !

जब यही जीना है दोस्तों, तो फ़िर मरना क्या............

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