शनिवार, 11 अप्रैल 2009



मंजिलें भी उसकी थी
रास्ता भी उसका था


एक में अकेला था


काफिला भी उसका था


साथ-साथ चलने कि सोच भी उसकी थी


फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसका था


आज क्यों अकेला हूँ मैं... ?


दिल सवाल करता है यह ....


लोग तो उसके थे ,


क्या खुदा भी उसका था.............



मनीष मेहता........

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