मंजिलें भी उसकी थी
रास्ता भी उसका था
एक में अकेला था
काफिला भी उसका था
साथ-साथ चलने कि सोच भी उसकी थी
फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसका था
आज क्यों अकेला हूँ मैं... ?
दिल सवाल करता है यह ....
लोग तो उसके थे ,
क्या खुदा भी उसका था.............
मनीष मेहता........
diurji aap to bhot badia likhte ho..
जवाब देंहटाएंmain to fan ho gayi aapki....
sabd bhi kam hai aapki tareef ke liye diurji....