मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

टूट गया कोई तेरे जाने से, हो सके तो लौट आना किसी बहाने से..!!

याद है ..........
तुम्हें, जब तुम कहा करती थीं कि चाहे जो हो जाए ...हम दोनों यूँ ही एक दूसरे से प्यार करते रहे या न रहे ...हम मिले या बिछुडे ...लेकिन में तुम्हे यूँ ही हर रोज़ एक मेल जरूर करुँगी एक sms ज़रूर करोगी ....हाँ शायद याद हो तुम्हें .....याद ही होगा.....१!!.

और मैं थोडा सा मुस्कुरा जाता था तुम्हारी इस बात पर ....शायद वो प्यार था तुम्हारा मेरे लिए जो ये सब कहता था ....कितना चाहा तुमने मुझे ...सच बहुत ज्यादा .....!

याद है मुझे जब तुम रो पड़ी थी ...कई दिन मुझ से न मिल पाने के कारण .... कैसे चुपाया था मैंने तुम्हें ...पास जो नहीं थी तुम .... उस पल तुम्हारी आँखों के आँसू महसूस किये थे मैंने ...दिल तो किया था कि तुम्हें सीने से लगा लूँ ...बाहों में भर लूँ ....और कहूँ ....पगली ऐसे भी कोई रोता है ....मैं तो हर पल तुम्हारे साथ हूँ ...तुम्हारी बातों में, यादों में ....उस नरमी में जो तुम महसूस करती हो हमेशा ...ऐसे जैसे तुम मेरे सीने से लिपटी हुई हो ....फिर तुम यूँ रोया न करो .....!!!

उस पल कितना मुश्किल हो गया था तुम्हें मनाना ....शायद बहुत मुश्किल .....और तुम कहने लगी थीं ....तुम्हारे बिना कैसे जी पाऊँगी ....मुमकिन नहीं शायद तुम्हारे बिना जीना ....और उस पल तुमने मुझे भी रुला सा ही दिया था .....मुझे पता है कैसे झूठ मूठ का हँस दिया था मैं .....और तुम बोली थी जाओ मैं बात नहीं करती तुमसे ....तुम हमेशा ऐसे ही करते हो......मेरी भी आँखें नम सी हो गई थी उस पल..........तुम भी न कितना परेशान करती थी मुझे.........पगली कही की.... क्या तुम अब भी वेसी ही हो.....??

याद है मुझे,तुम्हें मुझसे एक दिन की भी दूरी बर्दाश्त नहीं होती थी ....दिन मैं कितने बार फ़ोन जो करती थी तुम.है न.....घर से ऑफिस तक का सफ़र और ऑफिस से घर तक का सफ़र.मैं साथ जो रहता था तुम्हारे ......फ़ोन पे  .........और हाँ तुम्हें ये भी तो याद होगा न जब तुमने कहा था कि तुम मुझसे बात किये बिना २-३ घंटे से जायदा नहीं रह पाओगी.....लेकिन अब तो हमें बात न किया हुए बहुत टाइम हो गया आहे न..........शायद याद ही होगा तुम्हें...हाँ याद तो होगा ही ..... अब तो यूँ लगता है कि सदियाँ गुजर गयी हों ...कहने को अभी 1 माह हुआ है ....ऐसा शायद ही कभी हुआ हो जब तुम बिना मुझसे बात किये रह पायी हो ....कितना गहरा था हमारा प्यार और हमारा रिश्ता दोस्ती का रिश्ता ....मैं आज भी तुम्हारे हाथों की गर्मी महसूस करता हूँ अपने हाथों में ....और लगता है कि तुम यहीं कहीं हो मेरे पास ....अचानक से ही कोई हँसी गूंजती है मेरे कानों में .....क्या तुम आज भी खुश हो .....खुश हो न तुम ......तुम खुश हो अगर तो मैं समझूंगा कि में जी लूँगा यूँ ही इस कदर ...शायद तुम्हारी यादों को याद कर कर के .....तुम्हारी आँखें अभी भी मेरी आँखों में देखती नज़र आती हैं .....जब तुम आँखों से आँखों में देखते रहने का खेल खेलती थी ....कितना पसंद था तुम्हें वो खेल .....और तुम्हें जीत कर खुश होते देख मैं कितना खुश होता था ...हर बार तुमसे यही सोच हारा हूँ मैं .....इस बात को तुमसे बेहतर कोंन जानता है.....शायद कोई नहीं .....

मोहब्बत अपने आप में एक सुकून होती है ...एक ऐसी चाहत जिसको पाने की चाहत एक नशा बन जाती है ...और हर रोज़ , हर पल हम उस नशे में रहते हैं ....मोहब्बत पा लेने भर का नाम नहीं ...मोहब्बत में जो हो उसे मोहब्बत लफ्ज़ से भी मोहब्बत होती है ....इस से बढकर थी एक हमारी दोस्ती........या ये समझो की एक नशा ..........मेरे लिए तो नशा ही था ये सब....

ये दोस्ती भी एक नशा ही है ....हाँ हाँ एक नशा ही है ...जिसके लिए मैं लत्ती हो गया था....!!!

इंसानी दुनिया शायद समझती भी है और नहीं भी ....ये मिलावटें और नासमझी दो लोगों को जुदा कर देती है ...कभी कभी खुद इंसान अपनी गलती से मोहब्बत खो देता है ...फिर उसके पास कोई नहीं होता पर जिसने सच्ची मोहब्बत सच्ची दोस्ती की हो वो जिंदगी भर उस नशे को महसूस करता रहता है ...कभी ख़ुशी के रूप में तो कभी उसे गम बनाकर जिसे लफ्ज़ो मैं बयां करना मुश्किल सा लगता है थोडा ...रोता , सिसकता  है यादों मैं खो के...........हसीं मीठी यादें........बहुत मुश्किल है बयान करना ...........हाँ मुश्किल तो है ही.....!!!

याद है न तुम्हें... जब मैंने तुमसे ये बातें कही थीं ...और तुम बोली थी कि तुम्हें तो किसी फिल्म का डायलोग राईटर होना चाहिए था ...उस पल कितना हँसा था मैं ...जेसे पागल हो गया था मैं.........फिर तुमने ही मुझे चुप करया था,......याद है न .............मुझे भी याद है......!

इस दुनिया में इंसान ने शक की दीवारें खड़ी कर दीं ...देखा तुम जिन बातों पर हँसती थी ....आज उन्हीं दीवारों को तुम पार न कर सकीं ....उन्ही दीवारों ने हमारे बीच एक फ़ासला तय कर दिया ....शायद उसकी सज़ा मुझे मिली है आज....जिसमें मैं तड़प रहा हूँ या तुम तड़प रही हो........क्या है ये सब.......??? मैं गलत था??  खुद से भी ज़वाब पूछता हूँ मैं.....क्या किसी रिश्ते मैं ज्यदा ईमानदार था...इसलिए..........लेकिन जो भी था.......था मैं शायद बहुत ही बुरा.......क्या इतना बुरा था मैं या इतना बुरा हूँ .......इतना बुरा कि माफ़ भी न किया जा सकूँ...........या सच्चाई भी न बता सकू ....

मैं आज भी तुम्हारे किये हुए हर वादें पे यकीन करता हूँ....क्यूँ न करू तुमने जो किया था वादा.....

मैं आज भी तुम्हारे किये हुए वादे के सच होने का इंतज़ार करता हूँ ...कल रात तुम आई थी मेरे ख्वाबों में हकीकत बन कर ...पर आँख खोलने पर तुम न थी ...आजकल तुमने ये नया खेल शुरू कर दिया है ... हर रोज़ ये सोच कर सुबह उठता हूँ कि कहीं तुम्हारा मेल तो नहीं आया ...या तुम्हारा कोई sms तो नहीं आया............ किसी दिन अगर तुम्हारा सवाल आया तो ...कह सकूँ कि तुम्हारी साँसों को मैं आज भी महसूस करता हूँ .....तुम्हें बता सकूँ की कितना मिस करता हूँ मैं तुम्हें.............शयद कभी तो तुम्हारा मेल मिलेगा मुझे.....कभी तो तुम्हें भी मेरी याद आएगी.........कभी तो तुम जवाब दोगी मुझे..........मेरा दिल कहता हे मुझे बार बार ............कि तुम एक बार ज़रूर आओगी.......तूम वापस आओगी ..............हाँ हाँ तुम आओगी.........तुम झूट नहीं बोला करती थी मुझसे ............या कम बोला करती थी............आओगी न तुम...????........इंतजार है तुम्हारा ........

और हाँ तुम्हें देर तक नहाने कि आदत थी, ....और हाँ आइसक्रीम ज्यादा मत खाना मौसम बदल रहा है ......तुम्हें आइसक्रीम जो इतनी अच्छी लगती थी.........याद तो मेरी बहुत आती होगी न........मुझे भी आती है ......हाँ बहुत आती है...


तुम्हें पता है .........

जब रिश्तों को निभाने वाले बड़े हो जाए और रिश्तों के दायरे छोटे .....। तब काश ऐसा हो पाता कि माँ जिस तरह छोटे पड़ गए स्वेटर को उधेड़ कर फिर से नए सिरे से बुनती और हम उसे बड़े चाव से पहनते.......!!! ठीक उसी तरह अगर रिश्तों को भी सहेज कर रखा जा सकता तो कितना अच्छा होता या सही कहूँ तो उस एहसास को जिन्हें लोग रिश्तों का नाम देते हैं........!!! पर तुम्हारा और मेरा रिश्ता क्या था । ये मैं तब भी सोचता था और आज भी सोचता हूँ । क्या हमने अपने रिश्ते का कोई दायरा भी बनाया था । मुझे ठीक से याद नहीं कि इस पर भी हमारी कभी बात हुई हो या शायद हम इन सभी रिश्तों से अलग कहीं जुड़े हुए थे । कहीं किसी कोर पर गहरे से गाँठ बंधी हुई थी । जिसको देख पाना और समझ पाना कभी बहुत आसान जान पड़ता तो कभी मालूम ही न चलता कि भला रिश्तों का भी ऐसा कोई बंधन होता है.......!!!

एहसास को नाम देना मैंने तुमसे ही सीखा ....। तुम्हारे पास हर एहसास के लिए एक नाम जो हुआ करता था ........। हर एहसास का नाम कितना जुदा था । जो इस दुनिया के दिए हुए नामो से बिल्कुल नए ........। मुझे ठीक से याद है कि दर्द, ख़ुशी, दुःख, पीड़ा, हर्ष, इन सभी नामों से कितने अलग थे तुम्हारे दिए हुए नाम...... । उन एहसासों के नाम ..!!!

इन दायरों के बाहर भी एक दुनिया है ....... ये तुमने ही मुझे बताया ....... वो दायरे जो हम खुद बना लेते हैं या हमें बने हुए मिलते हैं । तुम कैसे उन सभी दायरों के बाहर, हमेशा मुझे मुस्कुराती हुई खड़ी मिलती........ हाँ तुम जब हाथ थाम कर मुझे उन दायरों से बाहर ले गयीं तो वो दुनिया अलग थी ......... जिसका एहसास करना तो बहुत आसान हुआ करता लेकिन तुम्हारी आँखों में झांकते हुए उन एहसासों को नाम देना उतना ही मुश्किल । हाँ बहुत मुश्किल ..............!!!

पर जब भी तुम साथ चलते हुए यूँ ही मेरा हाथ थाम लेती तो यूँ लगता कि मुझे उस एहसास का नाम मिल गया हो । तुम्हारे साथ उन भूले हुए दायरों और बहुत कहीं पीछे छूट गए रिश्तों के नाम को मैं याद ना तो किया करता और ना ही मुझे याद रहते.......... ।

ऐसे कई अनगिनत तुम्हारे पूँछे गए सवालों को में अपने दिलो दिमाग में संभाल कर रखता और तुम्हारे इंतज़ार में उन्हें बार-बार, एक-एक करके निकालता .......... शायद किसी सवाल का जवाब मुझे मिल जाए । हाँ उन सवालों में छुपी हुई, घुली हुई तुम्हारी यादों को में एक एक करके हाथ पर रखता और अपने चेहरे पर मल लेता । देखना चाहता कि तुम्हारी यादों के साथ मेरा चेहरा कैसा दिखता है ......!!! सच कहूँ तो मैं ठीक से आज भी अपने चेहरे को उन यादों के साथ महसूस करने की कितनी भी कोशिश करूँ वो चेहरा कहीं दिखाई नहीं पड़ता........ शायद वो चेहरा तुम अपने साथ जो ले गई हो .......!!! हाँ साथ ही ले गई होगी ......!!! नहीं तो मुझे मेरा चेहरा यूँ अजनबी सा ना लगता ...........अजनबी तो न था मैं कभी यूँ खुद से.........!!!

हाँ अगर कुछ याद रहता है तो वो पल जब तुमने उस रोज़ हमारे आस पास उन सभी एहसासों को बुला लिया था और हम रिश्तों के दायरों से बहुत दूर कहीं एहसासों की बसाई हुई दुनिया में खुद को पाया हुआ महसूस कर रहे थे.........! हाँ वो पल सबसे जुदा था । मैंने खुद को तो पाया ही, तुम्हें भी पा लिया था .......!

रिश्तों के दायरों से दूर और तुम्हारे-मेरे एहसासों के नज़दीक,....... मैं तुम्हें आज भी खुद के साथ पाता हूँ । हाँ यही तो एक एहसास है जो सबसे जुदा, सबसे सुखद है और जो हमेशा मेरे साथ रहता है......!!!

ये एहसास तुम्हारे होने का है.............जो हर पल मेरे साथ रहता है...........हर पल तुमें खुद के करीब पता है.......!! मैने जो देखा था ख्वाब वो अब भी मेरी पलकों पे ज़िंदा है .....कहते हें 'ख्वाब कभी नहीं मरते' और जो मर जाए तो वो ख्वाब ही कैसे...जानती हो तुमसे ये मैने एक बार कहा था...याद है ना तुम्हें...हाँ याद ही होगा...हाँ शायद... .......सोचता हूँ 'मरे हुए ख्वाब कैसे होते होंगे'...जिनका जीते जी कोई वजूद ना रहा....उन मरे हुए ख्वाबों का क्या होता होगा......क्योंकि किसी भी ख्वाब को 'शहीद' तो घोषित नहीं किया जा सकता......हे न ...!!!हाँ उसे थपथपी देकर सुलाया जरूर जा सकता है....हाँ शायद...!!!जब मैंने ये कहा था तब तुम कैसे सुनती रह गई थी मुझे देखती रह गयी थीं मुझे जैसे ......तुम मुझे इतने प्यार से जो सुनती थी.......और मैं अनजान सा खोया सा उस रेत पर आडी तिरछी लकीरें खींचे जा रहा था...बिलकुल जिंदगी की तरह...जो कमबख्त सीधी चलने का नाम नहीं लेती...काश इसमें भी ट्रेन के स्टेशन की तरह कोई बंदोबस्त होता....तो हम भी एक स्टेशन से चढ़ अपने मनपसंद स्टेशन तक जाकर उतर जाते...और कुछ पल सुस्ताने के बाद...आगे की सोचते...मगर शायद खुदा को ये कहाँ मंजूर... पर अगर ख्वाब मर जाते हैं तो वो यहीं कहीं भटकते होंगे हमारे आस पास...है ना...ऐसा मैं जब कहता था तो तुम कैसे प्यार से मुझे सुनने लगती थीं....ये भी अजीब इत्तेफाक है...नहीं इत्तेफाक नहीं हो सकता...कल रात को जब उनींदा सा अपनी हसरतों को खूँटी पर टांग जब बाहर चहल कदमी कर रहा था तो जानती हो क्या हुआ...एक मरा हुआ ख्वाब अचानक से मेरे पास आया...उसने देखा मुझे...मुस्कुराया...ठीक वैसे ही जैसे तुम मुस्कुराती थीं...आँखों से उदासी  के धुंए की लड़ी को हटाते हुए मैंने उसे गौर से देखा...एक पल वो मुझे तुमसा जान पड़ा...वही बड़ी बड़ी आँखें...वही शक्ल..वही चेहरे की मासूमियत .......वही अंदाज... शायद वो तुम ही थी......तुम ही थी न....मैं जनता हूँ वो तुम ही थी..........!!!


कहने लगी कैसे हो मनीष ......??..यही कहती थी न तुम भी........मैं मुस्कुराया...ठीक तो हूँ मैं...ठीक हूँ...वो आगे बड़ी.......मुस्कुराते हुए मेरे गालों को थपथपाया.....बोली मैं ख्वाब हूँ...तुम्हारा सबसे हसीन ख्वाब...और चलने को हुआ...फिर मुडा,और 'हाँ उसका भी'...मैंने उसे गौर से देखा...वो वही चाहता था कि मैं मुस्कुराऊं...ठीक वैसे ही जैसे तुम हमेशा चाहती थीं...वो हाथ हिलाते हुए बोली मैं यहीं हूँ तुम्हारे आस पास...और आँखों से ओझल हो गई ...ये तुम्हारा ही ख्वाब था....हाँ तुम्हारा ही होगा...तुमने ही इसे छोडा है मेरा साथ देने के लिए...है ना...हाँ तुम ठीक ही कहती थीं ख्वाब कभी नहीं मरते...वो हमारे आस पास ही तो रहते हैं...बिल्कुल पास...इतने कि हाथ से छुओ तो एक नरमी सी दे जाएँ ....अबकी जो दोबारा मिला तो उससे पूछूँगा क्या तुम आज भी आइसक्रीम खाती हो.....क्या तुम अब भी घंटो नहाते रहती हो........क्या तुम्हें आज भी मेरे sms का बेसब्री से इंतजार रहता है.....क्या बिना मेरे sms पड़े तुम्हें अभी भी नीद नहीं आती है.........नहीं आती होगी शायद ......हाँ नहीं आती होगी....क्यूंकि तुम ही कहती थी न........क्या तुम्हें आज भी ठण्ड में पंखा चलाना भाता है.....क्या तुम आज भी तरह तरह की शक्लें बनाती हो...क्या तुम आज भी हंसते हंसते गुमशुम हो जाती हो.......क्या तुम्हें आज भी मेरी वो प्यारी बातें याद आती है.......शायद आती होंगी........क्यूंकि मुझे तो आते हें........तुम्हें भी तो हर बात याद रहती थी.........

हाँ बहुत याद है तुम्हारा वो सोंग ............. "तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई, यूँही नहीं दिल लुभाता कोई....."

अच्छा गा लेती थी न तुम......सच्ची मैं अच्छा गाती थी .....तुम.......और मेरा वो

song ------कोंन सा था.....हाँ याद आया........वो बेमिसाल  फिल्म का था....तुमें भी याद हो गया था..............अब भी याद होगा है न..........इतनी बार जो सुनाया था मैने था मैने तुम्हें ............"एक रोज़ मैं तड़प के, इस दिल को थाम लूँगा, मेरे हसीं कातिल... मैं तेरा नाम लूँगा....!!" अच्छा था न............मैं आज भी वैसा  ही गाता हूँ.............बिलकुल हुबहू ..पर कोई सुनता ही नहीं है न.............कोई बताता ही नहीं कैसा  लगा...........कोई क्लेअपिंग नहीं देता है अब...............तुम जो नहीं हो न..........तो कोंन देगा ....कोई नहीं ......हाँ कोई ही नहीं .तुम्हारे दोस्ती के इतने करीब जो था कि सबसे दूरियां बना रखी थी मैने.......ये सोच के मुस्कुरता देता हूँ..........और तुम्हें तलाशता हूँ मैं अकसर उस पल मैं यादों मैं.............अपने डायरी के सुनसान पड़े पन्नो मैं.......अपने चेहरे मैं ........शायद कही मिल जाओगी तुम एक याद बन के..........तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा मिल जायेगा मुझे..बस यही सोच के....हाँ हाँ यही सोच के....तो मैं मुस्कुराता हूँ मैं..........!!!

तुम आज भी...ख्वाब बुनती हो........न ........शायद बुनती होगी.....मेरी तरहां ..........!!!

यूँ तो जिंदगी में कई मुश्किल दौर से गुजरा...और गुजरता हुआ यहाँ तक पहुंचा.....शायद हमारे बीच भी कई मुश्किले आई........तुम तो सब जानती हो....आजकल जब भी मैं अपनी आँखें बंद करके सोचता हूँ तो पता है सबसे मुश्किल घडी कौनसी लगती है...तुम्हें पा लेने और फिर खो देने के एहसास का पूर्णतः सच होना...तुम्हें पा लेने से पहले जब घंटो तुमसे गुफ्तगू करता था...वो तुम्हारी ढेर सारी बातें...जो कभी मुझे बच्चों की सी हरकतें लगती और कभी एकदम से बड़ों की सी...और इन सबके बीच वो ढेर सारे खुशियों के पल...उन्हें दामन में समेट लेने का मन करता.........शायद बच्ची ही थी तुम......हरकतें जो बच्चो सी करती थी न.......छोटी सी बात पे बुरा मान जाना ........कितना मुश्किल होता था तुमें मानना ..शायद सबसे मुश्किल.........ये मुझसे बेहतर कोंन जनता है,.......किसी को इतना नहीं मनाया है न.......!!! कुछ दिन तक तो एहसास नहीं भी न हुआ कि तुम नहीं हो यहाँ ...होता भी केसे कभी न साथ छोड़ने का जो वादा किया था......तुमने.....हाँ तुमने ..याद तो होगा न अभी भी....शायद याद ही होगा.....!!!

कई रोज़ बाद जब एहसास हुआ कि ये मुझे क्या हो गया है...ये मेरा दिल आखिर तुम्हारे होने और ना होने पर अपनी शक्लो सूरत क्यों बदल लेता है...और तुम्हारी हाँ और ना की आशंकाओं से घिरे मेरे दिल का क्या हाल रहा उन दिनों...ये तो दिल ही जानता है...कभी दिल में ख्याल आता कि तुम्हारे चेहरे को अपने हाथों में लेकर...तुम्हारी आँखों में आँखें डालकर कहूँ कि........... "हाँ तुम ही तो हो जिसके होने का एहसास हरदम मेरे साथ रहता है"...कभी हथेलियों पर.......कभी पीठ पर तुम्हारी उँगलियों से बनायीं गयी बेतरतीब सी शक्लों से...कभी जेब में पड़े तुम्हारे नर्म एहसास से...कभी कई घड़ियों की टिकटिक तक मेरी आँखों में तुम्हारी आँखों के एहसास से.......ये तुम्हारा एहसास भी न ..........बहुत रुलाता है मुझे..........!!!

क्या करूँ तुम्हें याद रखने कि जो आदत है.......हाँ तुम्हें न भूल पाने कि जो आदत है........

ये आदतें भी बड़ी अजीब होती हैं, हें न.......ये भूलना भी तो एक आदत है....और हाँ याद रखना भी एक आदत.......भूल जाना एक बीमारी है न....हाँ सुना है मैने.....! फिर याद करना क्या है....?? तुमें पता है........शायद नहीं पता होगा.......मुझे भी नहीं पता है न इसलिए........मैं ही तो बताता था न तुम्हें ......मुझसे ही तो पूछती थी तुम.....हर बात.....कितना समझाता था मैं तुम्हें ......है न........क्या अब भी कोई तुम्हें समझाता है मेरी तरहा...शायद नहीं ...........कोई नहीं .......हर कोई नहीं हो सकता है न....... मैं याद रखने की कोशिश करता हूँ कि तुम्हारी आँखें मुझे कुछ याद दिलाना चाहती हैं ...पर मैं भूल जाता हूँ.....

खासकर जब आप याद रखना चाहो तो भूल जाते हो......जैसे मैं याद रखने की कोशिश करता हूँ कि तुम्हारी आँखें मुझे कुछ याद दिलाना चाहती हैं ...पर मैं भूल जाता हूँ.....मुझे आज भी ये यकीं है तुम वापस आओगी..........एक बार मुझसे बात ज़रूर करोगी..........मुझे तुम्हारी दोस्ती कि ज़रूरत जो है..........आओगी न तुम............बात करोगी न फिर से..तुम ही कहती थी न कि .........बाबु हम हर एक मुश्किल को मिल के हल करेंगे.........हाँ आज भी तो मैं तुम्हारे साथ हूँ न.......फिर क्या गम है तुम्हें........एक बार फिर से वापस तो आ जाओ..........मेरे ख़ातिर ..............आओगी न तुम....

शायद आओगी तुम..................मेरा दिल कहता है.............दिल कभी झूठ नहीं बोलता है मुझसे..............

शायद एक बिखरते हुए ख्वाब को, एक टूटे हुए दिल को, एक बुझते हुए दिए को........फिर से तुम्हारी ज़रूरत है.........शायद फिर से इस उजड़े हुए दिल मैं कोई फूल खिलेगा........इस दिल का आशियाँ बसेगा ........दिल का दिया फिर से रोशन होगा.............!!!


इन्ही शब्दों के साथ

तुम्हारे इंतजार मैं ...........

   तुम्हारा....
     मनीष मेहता

(टूट गया कोई तेरे जाने से, हो सके तो लौट आना किसी बहाने से.!!!)

14 टिप्‍पणियां:

  1. Awesume........aap ki likhi huyi har baat dil me utar jaati hae ..

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  2. Kitna dard hae aapka...aapke sabdon ki duniya bhi kamaal ki hae........bahut khusnaseeb hogi wo ..jiske liye ye hae..

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  3. मैं तुम्हें कैसे समझाऊ की मैं इस यकीन और प्यार के लायक नहीं और न ही इस रिश्ते के..................... मैं वापस नहीं आ सकती सोचा था कभी पलट कर तुम्हें नहीं देखूंगी और तुम शायद मेरे बिना जीना सीख ही जाओगे या फिर मुझसे नफरत करने लगोगे पर अब भी तुम्हारा ये विश्वाश, तुम्हारा ये प्यार मुझसे बर्दाश्त नहीं होता......... मुझे खुद से और भी ज्यादा नफरत होने लगती है.......... मुझे माफ़ कर दो और खुद से दूर भी........ मैंने तुम्हें धोखा दिया है, तुमसे किया हुआ हर वादा तोडा है, फिर ये सब किस लिए? मुझसे तुम्हारा सिर्फ एक ही रिश्ता हो सकता है और वो है नफरत का..................शायद मैं माफ़ी के लायक भी नहीं....... पर फिर भी यही कहूँगी मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ...............................

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  4. Awesume...........aapki story ki har ek line dil ko gai sir...I'm speechless........shyad chand logo ko hi ese khusnaseeb chanhe wale milte hae.,...........herani hoti hae kyun thukraya hoga usne..gar ye last commnet uski taraf se hae to pad ke herani zarur hui..

    u r grt dear..
    keep smiling

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  5. Zindagi aur halat dono ek sath nahi chalte hae.......aapne zindgi ki haqikat se rubru karwa diya ..wo ek ek pal jo bhi uske sathbita he usko jis tarike se bayan kiya .realy Awesume.....ek ek line dil ko hu gai dear...mene aapko ek mail ki hae please aap apnaa no diziyega me aapse baat kar sakun....keep wrtng.keep smileing...god bles u sir.

    Regard's
    .....

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  6. hey don`t trust on people... and there words... they can change there words any time n forget what they had said before... they don`t care that we are taking it seriously... and atlast they break all the promises as well as our heart...

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  7. Awesome, speechless & realy touching heart....... Just carry on.......

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  8. itz fact of life -)
    sum tough battles hav 2 b fought alone,,
    sum paths hav 2 b crossed alone,,
    so nvr b so much emotionally attached 2 any1,,
    cz u nvr knw wen u hav 2 walk alone....

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  9. आपका ख्वाब सिर्फ ख्वाब नहीं हकीकत कि एक दुनिया सी लगती है....!!! सच कहूँ तो मैने जब आपका ब्लॉग का लिंक एक communites में देखा था और मैने just इसे ही ओपन कर के देखा .. और जब पहला पोस्ट पडा दिल को छु गया.....

    "जब रिश्तों को निभाने वाले बड़े हो जाए और रिश्तों के दायरे छोटे .....। तब काश ऐसा हो पाता कि माँ जिस तरह छोटे पड़ गए स्वेटर को उधेड़ कर फिर से नए सिरे से बुनती और हम उसे बड़े चाव से पहनते.......!!! ठीक उसी तरह अगर रिश्तों को भी सहेज कर रखा जा सकता तो कितना अच्छा होता या सही कहूँ तो उस एहसास को जिन्हें लोग रिश्तों का नाम देते हैं........!!!"..

    Realy awesume, Heart Tuching, keep writing

    God Bless U............!!!

    I'm ur Begest Fan..reply me by may mail

    Thanks

    Riya..

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  10. i am lost.. i hv lost al my words... kuch nahi keh paongi ab.. kuch bhi nahi..

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  11. ye haqiqat hai ya kalpana me samaj nahi pa rahi hu.. ek baar to padte2 ankhe nam ho gayi .. me itnaa doob gayi thi aapki likhi baato me.. sach me ab kyaa kahu.. m spechless................... god bless u always...


    tanu....

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