गुरुवार, 29 जनवरी 2009

मुझे मेरा घर याद आता है............!


मुझे मेरा घर याद आता है,

जब भी कही रुकता है,

शाम का सूरज मुझे वो पल याद आता है .......!

बादलो का आना,

वो पूरे आसमा मे बिखर जाना याद आता है .........!


शाम को अकसर जब भी,

मंदिरों मे बजती थी घंटी,

तो दिए की बाती का टिमटिमाना याद आता है.......!

वो चाँद के आने का इंतज़ार करना,

ओर रात को वो छत पर तारो को गिनना याद आता है......!

वो ठंड की सुबह,

वो शामों को फेला धुआ याद आता है,

क्या कहू मुझे मेरे घर का हर कोना याद आता है.......!

वो ममता आँचल ,

वो सुबह वो शामों को हर बिता पल याद आता है.........!
वो शाम का ,


समां वो हर तरफ फेला सा धुआ,


वो सर्दी की ठंडक वो चाँद के आने की आहट.........!

वो घर लोटते पछी वो सडको पर भागता करवा ............!

वो राह तकती आखे,

वो दरवाजे पर रुक जाती सासे,

हर पल खामोशी मे कोई अपना देखती है .........
जो पास हो दिल के हर पल साथ ,

हो दिल के उसके आने की राह तकती है,

चांदनी से जो रोशन हो आसमा,

ऐसे मे हर पल मुझे मेरा घर याद आता है........!!!

मनीष मेहता

बचपन का बो ज़माना.......!

बहुत याद आता है,
बचपन का बो ज़माना,
घंटों नदी में नहाना,
चुपके से आम तोड़कर चुराना,दिन भर गिल्ली-डंडा खेलना,
 पड़ोस वाली आंटी के घर के सीसे तोड़ना,
माँ से रोज़ डाट खाना ,
फिर प्यार से उनका बो मनाना,
दादा जी छड़ी लेकर भाग जाना,
तो कभी अम्मा का चस्मा छुपाना,
हर रात माँ से चाँद को पाने की जिद करना,
और फिर कहानी सुनते हुए नानी की गोद में सोना,
वो झूट-मूट का लड़ना-झगड़ना,
और फिर आपसमे एक-दुसरे को मनाना,
सच अब बहुत याद आता है ,
बचपन का बो ज़माना ......

बचपन के दुःख भी कितने अच्चे थे...



बचपन के दुःख भी कितने अच्चे थे,


तब तो सिर्फ खिलोने टुटा करते थे,


वो खुशियाँ भी न जाने केसी खुशियाँ थी,


तितली को पकडके उछला करते थे,


पाव मार के पानी मैं खुद को भिगोया करते थे,


अब तो एक आंसूं भी रुसवा कर जाता है,


बचपन मैं तो दिल खोल के रोया करते थे....................


manish mehta mak