मुझे मेरा घर याद आता है,
जब भी कही रुकता है,
शाम का सूरज मुझे वो पल याद आता है .......!
बादलो का आना,
वो पूरे आसमा मे बिखर जाना याद आता है .........!
शाम को अकसर जब भी,
मंदिरों मे बजती थी घंटी,
तो दिए की बाती का टिमटिमाना याद आता है.......!
वो चाँद के आने का इंतज़ार करना,
ओर रात को वो छत पर तारो को गिनना याद आता है......!
वो ठंड की सुबह,
वो शामों को फेला धुआ याद आता है,
क्या कहू मुझे मेरे घर का हर कोना याद आता है.......!
वो ममता आँचल ,
वो सुबह वो शामों को हर बिता पल याद आता है.........!
वो शाम का ,
समां वो हर तरफ फेला सा धुआ,
वो सर्दी की ठंडक वो चाँद के आने की आहट.........!
वो घर लोटते पछी वो सडको पर भागता करवा ............!
वो राह तकती आखे,
वो दरवाजे पर रुक जाती सासे,
हर पल खामोशी मे कोई अपना देखती है .........
जो पास हो दिल के हर पल साथ ,
हो दिल के उसके आने की राह तकती है,
चांदनी से जो रोशन हो आसमा,
ऐसे मे हर पल मुझे मेरा घर याद आता है........!!!
मनीष मेहता
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