बचपन का बो ज़माना,
घंटों नदी में नहाना,
चुपके से आम तोड़कर चुराना,दिन भर गिल्ली-डंडा खेलना,
पड़ोस वाली आंटी के घर के सीसे तोड़ना, माँ से रोज़ डाट खाना ,
फिर प्यार से उनका बो मनाना,
दादा जी छड़ी लेकर भाग जाना,
तो कभी अम्मा का चस्मा छुपाना,
हर रात माँ से चाँद को पाने की जिद करना,
और फिर कहानी सुनते हुए नानी की गोद में सोना,
वो झूट-मूट का लड़ना-झगड़ना,
और फिर आपसमे एक-दुसरे को मनाना,
सच अब बहुत याद आता है ,
बचपन का बो ज़माना ......
बचपन के दिन भी क्या दिन थे।
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