गुरुवार, 29 जनवरी 2009

बचपन के दुःख भी कितने अच्चे थे...



बचपन के दुःख भी कितने अच्चे थे,


तब तो सिर्फ खिलोने टुटा करते थे,


वो खुशियाँ भी न जाने केसी खुशियाँ थी,


तितली को पकडके उछला करते थे,


पाव मार के पानी मैं खुद को भिगोया करते थे,


अब तो एक आंसूं भी रुसवा कर जाता है,


बचपन मैं तो दिल खोल के रोया करते थे....................


manish mehta mak

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